Monday, February 13, 2006

गुलजारजी की "त्रिवेणी" इस काव्य-संग्रह से

कुछ २७ - २८ साल पहले गुलजारजी ने एक अनोखे फ़ार्म की कविताएँ लिखी जो "त्रिवेणी" नाम से मशहूर हुई। खुद गुलजार जी कहते है, "त्रिवेणी नाम इसलिये दिया था, कि पहले दो मिसरे, गंगा-जमुना की तरह मिलते है, और एक ख्याल, एक शे'र को मुकम्मल करते है। लेकीन इन दो धाराओं के नीचे एक और नदी है - सरस्वती, जो गुप्त है। नजर नही आती; त्रिवेणी का काम सरस्वती दिखाना है। तीसरा मिसरा, कहीं पहले दो मिसरों में गुप्त है। छुपा हुआ है।"

उसी त्रिवेणी संग्रह से कुछ कविताएँ यहाँ पेश कर रह हूँ।


उड के जाते हुए पंछी ने बस इतना देखा
देर तक हाथ हिलाती रही वह शाखा फ़िजा में

अलविदा कहने को? या पास बुलाने के लिये?


कभी कभी बाजार में यूँ भी हो जाता है
कीमत ठीक थी, जेब में इतने दाम नही थे

ऐसे ही इक बार मैं तुमको हार आया था ।


खफ़ा रहे वह हमेशा तो कुछ नही होता
कभी कभी जो मिले आंखें फ़ूट पडती है

बताएं किसको बहारों में दर्द होता है ।


क्या पता कब कहाँ से मारेगी?
बस कि मैं जिंदगी से डरता हूँ

मौत का क्या है, एक बार मारेगी।

1 Comments:

Blogger Gayatri said...

सुंदर, बहुत खूब! गुलज़ार जी की इन अनुपम रचनाओं से परिचय कराने के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया!

1:22 PM  

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